नबियों के बाद सिद्दीक़े अकबर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं:अक़ील अहमद मिसबाही।

नबियों के बाद सिद्दीक़े अकबर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं:अक़ील अहमद मिसबाही



"मेरे सीने में भी सिददीकी जिगर होता तो क्या होता"
"मै नाते मुसतफा मदहे सहाबा पढ़ रहा होता"

अमीरुल मोमिनीन, सैय्यदुल-मुताक़ीन, यारे गार, यारे मज़ार, अफ़ज़लुल-बशर हज़रत सिद्दीक अकबर (आरए) पैगंबर ए इसलाम के पसंदीदा साथी और विश्वासपात्र थे। उनके गुण असंख्य हैं जो सुन्नत व किताब से साबित हैं, जिन्हें ईर्ष्यालु और शत्रु के अलावा कोई भी अस्वीकार नहीं करेगा।

वह सच्चे आशिक ए रसूल वफादारे मुस्तफा है।

आप हज़रत अबू बक्र सिद्दीक का जन्म मक्का में आमुल-फ़ील के दो साल और छह महीने बाद हुआ था। यानी, उनका जन्म पवित्र पैगंबर के जन्म के दो साल और छह महीने बाद हुआ था।आप के पिता का नाम उस्मान (अबू कहाफा) है और आप की मां का नाम सलमा (उम्मुल खैर) है।आपका असली नाम अब्दुल्लाह था आपका उपनाम(कुन्नियत) अबू बक्र है, क्योंकि बक्र का अर्थ जवान ऊंट है और आपको युवा ऊंटों को पालने का बहुत शौक था, इसलिए आपको यह उपनाम मिला। और इसका दूसरा कारण यह है कि बक्र का अर्थ प्राथमिकता या पहल है। और इसमें आपका पहला स्थान है ईमान लाने और उसकी तसदीक करने में,खिलाफत में,इसीलिए आपको यह उपनाम मिला,आपका उपनाम सिद्दीक और अतीक है,ये दो उपलब्धियां आपको पवित्र पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दी थीं।जब कुरैश मेराज से इनकार कर रहे थे और आप से कहा गया था कि आपके दोस्त ऐसी-ऐसी बातें कहते हैं, तो हज़रत सिद्दीक ने कहा "यदि पवित्र पैगंबर ने कहा है कि वह मेराज पर गये, तो मैं इसकी पुष्टि करता हूं।" उन्होंने सच कहा। तभी से उन्हें सिद्दीकी कहा जाने लगा।उन्हें कुरान में इस विशेषता के साथ याद किया गया था।"और वे जो इस सच्चाई के साथ आए और जिन्होंने उनकी तसदीक़ की"(अल-ज़ुमर),हदीस शरीफ में है जब पैगंबर ने उहुद पहाड़ का दौरा किया, और सिद्दीकी फारूक और उस्मान उनके साथ थे, तो पहाड़ हिलने लगा।तो नबी ने कही थम जा तुझ पर एक पैगंबर, एक सिद्दीक और दो शहीद हैं,सिद्दीक अकबर को यह उपाधि भी हजरत सैयद आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दी थी। हदीस शरीफ में कहा गया है कि आप आग से मुक्त हैं,चूँकि अतीक का मतलब आज़ादी होता है इसलिए आप इस से मशहूर हुए कि आपको नर्क से आज़ादी मिली का मुज़दा मिला,हज़रत अबू बक्र सिद्दीकी की गिनती कुरैश के विश्वसनीय और अनुभवी व्यापारियों और जानकार लोगों में होती थी। कुरैश के लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यों में उनसे सलाह लेते थे।सबसे पहले ईमान लाने वाले जब इस्लाम के पैगंबर, मुहम्मद मुस्तफा, अलैहिस्सलाम ने उनके सामने इस्लाम पेश किया, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इस्लाम स्वीकार कर लिया और इस तरह उन्हें इस्लाम स्वीकार करने वाले स्वतंत्र वयस्क पुरुषों में से पहला कहा गया। इस्लाम स्वीकार करने के बाद,उन्होंने मक्का में तेरह साल बिताए, जो गंभीर कठिनाइयों और कष्टों का समय था। बाद में, वह पैगंबर मुहम्मद मुस्तफा के साथ में मक्का से मदीना चले गए।हदीस शरीफ में आपकी फजीलतें बेशुमार हैं

पवित्र पैगंबर (PBUH) ने हजरत अली से कहा कि ये दोनों जो आ रहे हैं (सिददीक और फारूक) दुनिया के सरदार हैं, लेकिन अली, आपको उन्हें नहीं बताना चाहिए।

उसी की व्याख्या करते हुए इमाम अहमद रज़ा फरमाते हैं "यह दोनों है सरदारे दो जहां" 

"ऐ मुर्तुजा अतीक व उमर को खबर ना हो"

 दूसरी हदीस शरीफ है,अबू बक्र और उमर ये दोनों जन्नत के शेखों के सरदारहैं,हदीस में है हिजरत की रात अबू बक्र का एक नेक काम दुनिया के सभी लोगों के सभी अच्छे कामों पर भारी है।आपकी विशेषता,हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ की अनेक विशेषताएँ हैं।

आप ईमान लाने वाले पहले व्यक्ति हैं।आप वही हैं जिसके पीछे पवित्र पैगंबर ने नमाज़ अदा की थी। आपने हज़रत बिलाल को लाखों रूपये देकर अज़ाद कर दिया था।

आपने अपनी बेटी आयशा का निकाह नबी से किया केवल सिद्दीका बिन्त सिद्दीक ही कुंवारी थी।) वह हमेशा पवित्र पैगंबर के साथ रहे।आपकी

वफात: 22 जमादी अल-अखिरा 13 हिजरी को 63 वर्ष की आयु में उनका विसाल हो गया। इस तरह, पैगंबर का यह सच्चा आशिक़ भी अपने महबूब के विसाल की उम्र के मुआफिकत की ,खुदा हम सभी को सही मजहब पर कायम रखें और नबी का सच्चा आशिक व वफादार बनाए।


मुफ्ती अकील अहमद मिस्बाही की वॉल से।।